तुलसीदास के परिस्थितियों की विशेषताएं

तुलसीदास जी का जन्म ऐसे विषम परिस्थितियों में हुआ था, हिंदू समाज अशक्त होकर विदेशी चंगुल में फंस चुका था। हिंदू समाज की संस्कृति और सभ्यता प्रायः बीनष्ट हो चुकी थी और कहीं कोई पथ प्रदर्शक नहीं था। इस युग में जहां एक और मंदिरों का विध्वंश किया गया, ग्राम और नगरों का विकास हुआ, वहीं संस्कारों की भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गई।
इसके अतिरिक्त तलवार के बल पर हिंदुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था
सर्वत्र धार्मिक विशेषताओं का तांडव हो रहा था और विभिन्न संप्रदायों ने अपने अपने डफली, अपना अपना राग अलापना आरंभ कर दिया था। ऐसी परिस्थिति में भोली-भाली जनता यह समझने में असमर्थ थी कि वह किस संप्रदाय का आसरा ले। उस समय दीग्भ्रमित जनता को ऐसे नाभक की आवश्यकता थी, जो उसके नैतिक जीवन की नौका की पतवार संभाल ले।
गोस्वामी तुलसीदास ने अंधकार के गर्त में डूबी हुई जनता के समक्ष भगवान राम का लोक मंगलकारी रूप प्रस्तुत किया और उनसे अपूर्व आशा एवं शक्ति का संचार किया। युग दृष्टा तुलसी ने अपनी अमर कृति' श्रीरामचरितमानस'द्वारा भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न मतों, संप्रदायों एवं धाराओं में समन्वय स्थापित किया। उन्होंने अपने युग का नवीन दिशा, नई गति एवं नई नवीन प्रेरणा दी। उन्होंने सच्चे लोकनायक के समान समाज में व्याप्त वैमनस्य की चौड़ी खाई को पाटने का सफल प्रयत्न किया

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